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मिसिर कविराय की कुण्डलिया




मिसिर हरिहरपुरी की 

            कुण्डलिया


गौतम बुद्ध महान में,लोग खोजते दोष।

अच्छाई दिखती नहीं, सिर्फ दोष-संतोष।।

सिर्फ दोष-संतोष, मनुज है कायर माया।

सुंदरता का अर्थ, नहीं जानत मन-काया।।

कहें मिसिर कविराय,गढ़त जो पथ सर्वोत्तम।

सकल राज सुत नारि,  त्याग बनता वह गौतम।।


      मिसिर की कुण्डलिया


मस्तक का श्रृंगार है, निर्मल मन का भाव।

पावन उज्ज्वल मन कमल, में औषधि की छाँव।।

में औषधि की छाँव, करत है कंचन काया।

हरती मन-उर रोग, बहाती सब पर दाया।।

कहें मिसिर कविराय, रखो मन में शिव पुस्तक।

चमके सदा ललाट, खिले चंदन से मस्तक।।






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2 Comments

Muskan khan

09-Jan-2023 06:10 PM

Well done

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Sushi saxena

08-Jan-2023 08:27 PM

👌👌

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